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प्रतिपाद्य
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describable
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প্রতিপাদ্য
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முக்கிய
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ପ୍ରତିପାଦ୍ୟ
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ਵਿਚਾਰਨ ਯੋਗ
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വർണ്ണിക്കനുള്ള
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చెప్పదగిన
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અભિધેય
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ವಾಚ್ಯ
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प्रतिपादीत
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निचोड
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subject-matter
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premised
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उपन्यसनीय
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उपोदघात
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समर्थणें
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अभिधेय
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एकनाथी भागवत - श्लोक २६ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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आकांक्षा
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उपन्यस्त
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अहिल्योद्धार
अण्णा जसे शास्त्रविद्येंत निपुण होते, तसेंच श्रौतस्मार्तज्ञकर्मविधींतही अपूर्व निष्णात होते.
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चतुर्थपरिच्छेदः - परिच्छेदः ५
श्री १००८ श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य-योगीन्द्रवर्य-श्रीआत्मानन्दसर स्वतीस्वामिभिंर्विरचितः ।
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मुक्तेश्वरांच्या वाङ्मयातील श्रीमहालक्ष्मी भाग२
देवीभागवत महापुराणात करवीर निवासिनी महालक्ष्मीला प्रथम स्थान दिले आहे, तिरूपति बालाजीच्या दर्शनानंतर महालक्ष्मीचे दर्शन भक्त घेतातच.
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भैरव अष्टक - श्रीकाशीपुरि क्षेत्ररक्षण...
वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.
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आर्तत्राणनारायणाष्टादशकम्च्द - प्रह्लाद प्रभृरस्ति चेत्त...
गुरु म्हणजे शिक्षक ज्ञान देणारा. खरे तर आई हीच पहिली गुरु होय.
A Guru is a teacher in Hinduism
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असंत
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बिंब
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निष्कर्ष
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श्र्वेताश्र्वतर
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वेदस्तुति - श्लोक १४
' हरिवरदा ’ ग्रंथातील वेदस्तुती भागाची ही रसाळ प्राकृत भाषेत स्वामी श्रीकृष्णदयार्णव स्वामींनी लिहीलेली टीका आहे.
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पदसंग्रह - पदे २२६ ते २३०
रंगनाथ स्वामींचा जन्म शके १५३४ परिघाविसंवत्सर मार्गशीर्ष शुद्ध १० रोजीं झाला.
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श्लेष अलंकारः - लक्षण ७
रसगंगाधर ग्रंथाचे लेखक पंडितराज जगन्नाथ होत. व्याकरण हा भाषेचा पाया आहे.
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एकनाथी भागवत - श्लोक ३० वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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एकनाथी भागवत - श्लोक १५ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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भिक्षाटनकाव्यम् - चतुस्त्रिंशी पद्धतिः
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
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अध्याय ९० वा - श्लोक ९६ ते १००
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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वायवीयसंहिता पूर्वभागः - अध्यायः २६
शिव पुराणात भगवान शिवांच्या विविध रूपांचे, अवतारांचे, ज्योतिर्लिंगांचे, शिव भक्तांचे आणि भक्तिचे विस्तृत वर्णन केलेले आहे.
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श्लेष अलंकार - लक्षण ८
रसगंगाधर ग्रंथाचे लेखक पंडितराज जगन्नाथ होत. व्याकरण हा भाषेचा पाया आहे.
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अध्याय ८५ वा - श्लोक २१ ते २५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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वेदस्तुति - श्लोक १८
' हरिवरदा ’ ग्रंथातील वेदस्तुती भागाची ही रसाळ प्राकृत भाषेत स्वामी श्रीकृष्णदयार्णव स्वामींनी लिहीलेली टीका आहे.
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द्वितीयोध्यायः - सूत्र २२
ब्रह्मसूत्र वरील हा टीका ग्रंथ आहे. ब्रह्मसूत्र ग्रंथात एकंदर चार अध्याय आहेत.
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एकनाथी भागवत - श्लोक १३ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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वेदस्तुति - श्लोक १९
' हरिवरदा ’ ग्रंथातील वेदस्तुती भागाची ही रसाळ प्राकृत भाषेत स्वामी श्रीकृष्णदयार्णव स्वामींनी लिहीलेली टीका आहे.
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प्रथम पटल - विविध साधनानि १
रूद्रयामल तन्त्रशास्त्र मे आद्य ग्रथ माना जाता है । कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।
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ज्ञानपर अभंग - ४४६ ते ४५५
संत बहेणाबाईचे अभंग
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व्रतोद्यापन प्रयोगः - पूजा भाग ४५
व्रत केल्यावर त्याचे उद्यापन पूर्ण झाल्याशिवाय फळ मिळत नाही , म्हणून उद्यापनांच्या प्रयोगांचा संग्रह . व्रत उद्यापनाने यजमानाची कर्मपूर्ति होते .
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आत्मा
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अध्याय ८३ वा - श्लोक १ ते ५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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अध्याय ५९ वा - श्लोक २६ ते ३०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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